क्या कुछ साथ लेकर गए हाँ मनोहर घ्

Mar 18 2019

 

एक ईमानदार और आम आदमी के बीच के नेता मनोहर पर्रिकर के असमय निधन से देश शोकग्रस्त है ण्मनोहर पर्रिकर गोवा की राजनीति के लिए जन्मे थी लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उन्हें केंद्र की राजनीति में ले आये और उन्हें रक्षा मंत्री बना दिया था लेकिन मनोदर का मन रक्षा विभाग के शुष्क कामकाज में नहीं लगा और वे वापस गोवा की सेवा के लिए लौट गए ण्मोदी युग में ये पहला अवसर था जब किसी नेता को उसके मन.मुताबिक़ काम करने का अवसर मिला ण्वे अनिम सांस तक गोवा के सेवक बने रहे उन्होंने चौकीदारी का दावा कभी नहीं किया ण्
मनोहर पर्रिकर संक्रमण के दौर से गुजर   रही राजनीति के एक अविवादित नेता थे लेकिन केंद्र में आकर उन्हें भी विवादों का सामना करना पड़ा लेकिन उनका संयम ही कि वे विवादों के बावजूद मौन रहे या उन्होंने अपनी सीमित प्रतिक्रिया दी ण्मनोहर न किसी के प्रतिद्वंदी थे और न उनकी कोई महत्वाकांक्षा थीए वे केवल गोवा की सेवा करना चाहते थे ण्प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब राफेल सौदे के बाद विवादों में घिर तब भी मनोहर नहीं बोले एबोले भी थे तो इतना कम कि उससे मोदी को कोई लाभ नहीं हुआ ण्राफेल सौदे के रहस्य मनोहर अपने सीने में दफन कर ले गए ण्मुझे लगता है कि ऐसा उन्होंने देश और भाजपा के हित में किया एजो बहुत कम नेता कर पाते हैं ण्
मनोहर का मौन मोदी जी के लिए वरदान बनेगा या समस्या ये आने वाले चुनाव में तय होगा लेकिन मनोहर मोदी युग में एक नयी इबारत लिख गए हैं और उनसे भाजपा के दूसरे नेताओं को नसीहत लेकर अपना आत्मविशास बढ़ाना चाहिए ताकि वे सही को सही और गलत को गलत कह सकें ण्38  साल की भाजपा में मनोहर पर्रिकर जैसे नेता गिने.चुने हैं जो न लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी की तरह मौनी बाबा बने और न उन्होंने अपनी पहचान से कोई समझौता किया ण्मनोहर के बाद गोवा की सियासत को साधने में भाजपा को बहुत परेशानी होगी एक्योंकि मनोहर जैसा विमल नेता राज्य में कोई दूसरा है ही नहीं ण्उन्होंने अपनी सादगी अंतिम समय तक बनाये रखी ण्
मनोहर पर्रिकर जब कैंसर से जंग लड़ते हुए विधानसभा में आते थे तब मैंने उनकी आलोचना में खूब लिखा था ण्मेरी तरह बहुत से नेताओं ने उनकी आलोचना की लेकिन वे अविचलित दिखाई दिए भले ही वे अंदर से आहत हुए   होंगे ण्उनकी जिजीविषा बेमिसाल थी एवे क्यों अंत तक काम करते रहे ये रहस्य ही रह गया ण्राफेल सौदे की फाइलों के गायब होने के बाद पूर्व रक्षामंत्री के रूप में अनेक बार मनोहर पर्रिकर का नाम आया लेकिन जो राज था वो राज ही रहा ण्वे न जुमलेबाज थे और न ही उन्होंने कभी ताली बजाई हाँ उनके भाषणों पर असंख्य तालियां जरूर बजतीं थीण्मुझे मनोहर पर्रिकर से एक.दो अवसरों पर मिलने का अवसर मिला और मैंने जाना कि राजनीति में मनोहर होना कोई आसान काम नहीं हैण्लगातार पांच साल पंत प्रधान रहने के बाद भी श्री नरेंद्र मोदी आजतक मनोहर नहीं हो पाए ण्
वैचारिक रूप से भिन्नता के स्वामी मनोहर ने अपने विरोधियों को भी अपना मुरीद बनाकर रखा थाएआज का न होना खलता है ण्मुझे लगता है कि वे यदि कुछ समय आराम करते तो मुमकिन है कि हमारे बीच और रहते लेकिन उनका जाना तय था और वे सक्रिय रहते हुए गए एउन्होंने साबित किया कि मनुष्य की इच्छाशक्ति से बड़ी कोई दूसरी चीज नहीं होती ण्आज देश को एक नहीं पचासों मनोहरों की जरूरत हैएमनोहर पर्रिकर की प्रजाति को संरक्षण दिए बिना हम आज की दूषित राजनीति को बचाकर नहीं रख सकतेण्मनोहर के प्रति हमारी सच्ची श्रृद्धांजलि यही होगी कि हम सियासत में दूसरे मनोहर पैदा करें ताकि राजनीति में जनता का भरोसा बना रहे ण्