बेटों ने सेवानिवृत बैंक मैनेजर पिता की इच्छा का किया सम्मान, मौत के बाद उनकी देहदान की
Oct 18 2021
ग्वालियर। मेरे शरीर पर शोध कर चिकित्सक विद्यार्थी काबिल डाक्टर बनें। वह जटिल से जटिल बीमारियों का हल निकाल सकें। जीते जी यह विचार यशवंत पेंढारकर ने स्वजनों से व्यक्त किए थे। गांधी नगर निवासी 63 वर्षीय यशवंत पेंढारकर का घर पर देहांत हो गया। उनकी इच्छा की पूर्ति करते हुए स्वजन ने उनकी अंतिम यात्रा निकालकर पार्थिव देह (शरीर) को जीआर मेडिकल कालेज के एनाटोमी विभाग को दान किया। अब एमबीबीएस के विद्यार्थी इसके जरिए शरीर के विभिन्न अंगों को बारीकी से जान उनका उपचार सीखेंगे और काबिल डाक्टर बनेंगे।
यशवंत पेंढारकर ने सात जुलाई 2017 को देहदान के लिए फार्म भरते हुए शपथ पत्र दिया था। इसमें उन्होंने लिखा था कि मृत्यु के पश्चात उसके शरीर को जीआर मेडिकल के एबीबीएस छात्रों के अध्यन व शोध हेतु दान कर दिया जावे। पेंढारकर वर्ष 2018 में बैंक से सेवानिवृत हुए थे। उनके बेटे पुष्कर ने बताया वर्ष 2012 में उन्हें श्वांस रोग हुआ था, इसके बाद बीमारी बढ़ती गई। परिवार में काफी डाक्टर हैं, इसलिए उनके उपचार में अन्य चिकित्सकों काफी सहयोग मिला। चिकित्सकों की सेवा को देखते हुए उन्होंने काबिल डाक्टर तैयार करने के उद्देश्य से देह दान की इच्छा जताई थी। बाद में उन्होंने इसके लिए फार्म भरा और शपथ पत्र भी दिया।
चिकित्सा शिक्षा के लिए अहम है मृत शरीर
एमबीबीएस की पढ़ाई के दौरान छात्रों को प्रथम वर्ष में ही कैडेवर एनाटमी विषय पढ़ाया जाता है। छात्रों से शव विच्छेद भी कराया जाता है। वे हाथ-पैर, पेट, ह्दय, मस्तिष्क आदि अंगों का एक-एक परीक्षण करते हैं। साथ ही आपरेशन के जरिए शरीर से जुड़े अंगों और नसों, हड्डियों के बारे में जानते और उपचार सीखते हैं। यह प्रक्रिया छात्रों को श्रेष्ठ चिकित्सक बनाने में अहम होती है।
जीआर मेडिकल कालेज को डेढ़ साल बाद दान में मिला शरीर, छात्र करेंगे शोध
कोरोना के चलते पिछले डेढ़ साल से जीआरएमसी को पार्थिव देह दान में नहीं मिल सकी थी। एनाटोमी विभाग देह के संकट से गुजर रहा था। छात्रों को मानव शरीर की सरंचना की शिक्षा सिर्फ एक शरीर के भरोसे चल रही थी। इससे पहले फरवरी 2020 में विभाग को श्वेता कुलकर्णी की देह दान में मिली थी। एनाटोमी विभाग में एक ही शरीर है।
1 साल में 31 शरीर दान में मिले
एनाटोमी विभाग को वर्ष 2000 से पार्थिव शरीर दान में मिलना शुरू हुए थे। पहली देह लीला पाठक की मिली थी। इसके बाद वर्ष 2003 में एक, 2008 में एक, 2011 में तीन, 2013 में दो, 2016 में छह, 2017-18 में 6-6, वर्ष 2019 में तीन तथा 2020 में एक शरीर दान मिल में मिला था।
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