एण्डटीवी के सितारों ने पेरेन्ट्स डे पर अपने माता-पिता के प्रति जताया आभार, जिनसे उन्हें हमेशा प्रेरणा मिली है

Jul 24 2020

पेरेन्ट्स वह पहले इंसान होते हैं जिनसे हम हमेशा सबसे पहले प्रेरणा लेते हैं। उनके जैसे लिखने की कोशिश करना, या उनके जैसे कपड़े पहनना और हाथ में ब्रीफकेस लेकर उनकी तरह आॅफिस जाने की नकल करना; अक्सर हमारे पेरेन्ट्स हमारी जिंदगी के रोल माॅडल बन जाते हैं। हम चाहे कितने भी बड़े हो जाएं, हमारे पेरेन्ट्स अपने जादुई तरीकों से हमें प्रेरित करते रहते हैं। वे हमारे शक्तिस्तंभ होते हैं और उनमें कुछ ऐसा होता है, जो हमारे भीतर की आग को बुझने नहीं देता है और हम आगे बढ़ते जाते हैं। पेरेन्ट्स के इन निस्वार्थ प्रयासों को याद करते हुए एण्डटीवी के सितारे बता रहे हैं कि उनके पेरेन्ट्स कैसे उनकी प्रेरणा के स्रोत हैं।
एण्डटीवी के कहत हनुमान जय श्री राम में बाल हनुमान की माँ अंजनी की भूमिका निभा रहीं स्नेहा वाघ अपनी उपलब्धियों का श्रेय अपने पेरेन्ट्स को देती हैं। इसके बारे में उन्होंने कहा, ‘‘अपने पेरेन्ट्स को लेकर मैं बहुत मुखर हूँ और आज भी गर्व से कहती हूँ कि मेरी सफलता का श्रेय उन्हें जाता है। मेरी कुशलताएं इसलिये हैं, क्योंकि उन्होंने मुझे ऐसा बनने दिया। एक्टिंग और डांसिंग ऐसी कलाएं हैं, जो अभिव्यक्ति की मांग करती हैं और स्वतंत्रता चाहती हैं। मेरे पेरेन्ट्स ने मेरे अनुभव की अभिव्यक्ति से मुझे कभी नहीं रोका। इसलिये मुझे दूसरों की गलतफहमियों का शिकार होने का डर नहीं था। यह किसी भी कला के लिये जरूरी है और इसी कारण मैं अपने लिये बिलकुल सही कॅरियर चुन सकी। आज मैं जो कुछ भी हूँ, उसका श्रेय मेरे पेरेन्ट्स को जाता है। वे हमेशा मुझे खुद पर यकीन करने के लिये प्रेरित करते हैं।’’
एण्डटीवी के शो ‘गुड़िया हमारी सभी पे भारी‘ की गुड़िया, यानि सारिका बहरोलिया अपने पेरेन्ट्स के बहुत करीब हैं और इस पेरेन्ट्स डे पर उन्हें याद कर रही हैं। इसके बारे में अपने विचार रखते हुए उन्होंने कहा, ‘‘मेरे पेरेन्ट्स मेरी लाइफलाइन हैं और मैं हमेशा उनके साथ रहना चाहती हूँ। जब मैं छोटी थी, तब वे बहुत कठोर थे। मुझे बहुत कम पाॅकेट मनी मिलती थी और जो मिलती थी, उसे भी सोच-समझकर खर्च करने के लिये कहा जाता था, लेकिन अब मुझे लगता है कि वह मेरे भले के लिये था। आज मैं जो कुछ भी हूँ, उनकी वजह से हूँ। मैंने अपनी माँ से शांत और धैर्यवान बनना सीखा, जबकि पिताजी ने बैंकिंग और फाइनेंस के बारे में सब-कुछ सिखाया। उन्होंने मुझे बताया कि शेयरिंग क्या होती है और दूसरों की देखभाल कैसे करें। मैं इन गुणों को रोपने और मुझे एक अच्छा इंसान बनाने के लिये उनकी शुक्रगुजार हूँ। मुझे उनकी याद आती है, खासकर मौजूदा स्थिति में। हम वीडियो काॅल्स पर कनेक्ट होते हैं, लेकिन मैं जल्दी ही उनसे मिलना चाहती हूँ।’’
हप्पू की उलटन पलटन की दबंग दुल्हनिया कामना पाठक ने कहा, ‘‘मेरे पेरेन्ट्स ने मेरे कॅरियर की शुरूआत से लगातार मुझे सहयोग दिया है। उन दोनों को कला और संगीत बहुत पसंद है और उनके पदचिन्हों पर चलकर मैं बहुत छोटी उम्र में थियेटर में काम करने लगी थी। वे हमेशा दर्शकों के बीच बैठते थे और मेरे परफाॅर्मेंस पर मेरा उत्साह बढ़ाते थे, जब मैं काॅलेज में थी। जिस दिन मैंने हप्पू की उलटन पलटन साइन किया, तब मैं बहुत नर्वस थी और मैंने अपनी माँ को काॅल कर अपनी चिंता बताई कि मुझे बुंदेलखण्डी भाषा नहीं आती है। उन्होंने मुझे शांत किया और अगली फ्लाइट पकड़कर मुंबई आ गईं और मुझे वह भाषा सिखाई। उन्होंने मुझे इतना अच्छा सिखाया कि मेरी पहले दिन की डायलाॅग डिलीवरी देखकर पूरा क्रू आश्चर्यचकित हो गया। मेरी माँ ने सही डायलाॅग्स देने में मेरी मदद की, जबकि मेरे पिताजी ने बुंदेलखण्डी में गाने में मेरी सहायता की। जब से मैंने ‘माँ’ और ‘पापा’ शब्द सुने हैं, तभी से वे मेरे सबसे मजबूत शक्तिस्तंभ हैं।’’
संतोषी माँ की अनन्य भक्त की भूमिका निभा रहीं तन्वी डोगरा ने कहा, ‘‘मेरे पेरेन्ट्स मेरे सबसे बड़े सहयोगी और शक्तिस्तंभ हैं, चाहे मेरा कॅरियर चुनना हो या जिन्दगी के फैसले लेना। जब मैंने अपना पहला शो साइन किया, तो मुझे पुणे से मुंबई जाना था। शुरूआत में मेरे पेरेन्ट्स संदेह कर रहे थे और उन्हें मेरी चिंता थी। एक सप्ताह बाद माँ मेरे साथ आ गईं और मेरे भाई और पिता पुणे में ही रहे। तब मुझे एहसास हुआ कि पेरेन्ट्स अपने बच्चे की सुरक्षा और देखभाल के लिये कुछ भी कर सकते हैं, चाहे अपने बच्चे के लिये उन्हें एक-दूसरे से अलग रहना हो। हमारा रिश्ता प्यार, विश्वास और एक-दूसरे की परवाह पर टिका है। उनके लगातार सहयोग और मेरी क्षमताओं पर विश्वास के कारण ही मेरे अंदर वह आत्मविश्वास आया, जिसके कारण आज मैं कुछ हूँ।’’
संतोषी माँ सुनाएं व्रत कथाएं में महादेव के भक्त इंद्रेश की भूमिका निभा रहे आशीष कादियान ने कहा, ‘‘बचपन से ही मेरा रूझान पढ़ाई से इतर दूसरी गतिविधियों में था। जब मैंने एक्टिंग में कॅरियर बनाने का फैसला किया, तब मेरे पेरेन्ट्स बहुत हिचक रहे थे, क्योंकि उन्हें मनोरंजन उद्योग में मेरे न टिकने का डर था। लेकिन मेरी प्रतिभा और कड़ी मेहनत को देखकर उन्होंने मुझे मेरा सपना पूरा करने के लिये प्रोत्साहित किया। मेरे पिता ने मुझे मुंबई जाने का टिकट दिया और कुछ पैसे भी दिये। मैंने कई आॅडिशन दिये और एक काॅल सेंटर में नाइट शिफ्ट भी कीं, ताकि मैं एक्टिंग क्लास की फीस और मकान का किराया दे सकूं और अंततः मुझे एक शो में काम मिल गया। जब उन्होंने मुझे पहली बार टीवी पर देखा, तो उनकी खुशी का ठिकाना न रहा।
यह कहते हुए मुझे गर्व होता है कि पहला काम पाने के लिए मेरा संघर्ष और लगन इसलिए संभव हुए क्योंकि क्योंकि मेरे पेरेन्ट्स को मुझ पर विश्वास था। आखिरकार मुझे मेरे पिता के एक कथन का महत्व समझ में आया, जो वे अक्सर कहा करते थे, ‘‘कड़ी मेहनत हमेशा सफलता देती है।’’