छोटे व्यवसाय के मालिकों की और कौन ध्यान दे रहा है, जिनके व्यवसाय का भविष्य संकट में है ?
Jul 01 2020
कोविड-19 के वैश्विक बाजार पर व्यापक प्रभाव के साथ यह भी सुनिश्चित हो गया है कि वर्ष 2020 किसी भी व्यवसाय की शुरुआत के लिए अच्छा नहीं है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा कोरोना वायरस प्रकोप को एक वैश्विक महामारी के रूप में घोषित करने के साथ ही यह महामारी दूरगामी परिणामों के साथ और भी मुश्किल हो गई है। यह महामारी न केवल बड़े स्तर पर महामारी का कारण बनी है, बल्कि वैश्विक व्यापार, वाणिज्य, निवेश और आपूर्ति श्रृंखलाओं को भी एक गहरे संकट में खड़ा कर दिया है। पूर्ण रूप से लॉकडाउन और यात्रा प्रतिबंध वाले शहरों में व्यवसाय के मालिक आर्थिक मंदी के सबसे बुरे दौर से गुजर रहे हैं, जहाँ उनके व्यवसाय को एक के बाद एक निरंतर नुकसान सहन करना होगा।सरकार ने कोविड-19 के प्रकोप की रोकथाम के लिए कई कदम उठाए हैं। एक तरफ जहां देश को लॉकडाउन में रखा गया हैं और सभी को क्वारंटाइन में रहने की सलाह दी जा रही है, जबकि दूसरी तरफ टूट चुकी आपूर्ति श्रृंखला और गिरती अर्थव्यवस्था, व्यवसायों और व्यापार मालिकों को दिन प्रतिदिन गहरे नुकसान में पंहुचा रही है। कर्मचारियों के लिए कई सुविधाओं का एलान किया गया है, जिनमें लॉकडाउन के दौरान छुट्टी का पूर्ण भुगतान, वर्क फ्रॉम होम, यात्रा पर प्रतिबंध आदि शामिल हैं, लेकिन प्रश्न यह उठता है, क्या प्रशासन नियोक्ताओं या छोटे व्यवसाय मालिकों की समस्याओं पर ध्यान केंद्रित कर रहा है, जो इस समय संकट के दौर में परेशानी से गुजर रहे हैं ? वे कहाँ जाएंगे? उनकी समस्याओं को कौन सुनेगा ? क्या सरकारी तंत्र को उन पर थोड़ी भी दया नहीं आ रही है जो इस संकट के समय में भारी नुकसान उठाते हुए भी अपने कर्मचारियों को समर्थन कर रहे हैं ? जब उनके पास कम काम है या कुछ के व्यवसाय बंद हो चुके हैं, तो वे ऋण और अन्य जरुरी आश्यकताओं की पूर्ति कैसे करेंगे और अपने कर्मचारियों को वेतन कैसे प्रदान करेंगे? ये कुछ सवाल हैं जिनका जवाब मिलना बाकी है। अगर छोटे व्यापारी कोविड-19 से नहीं मरेंगे तो वे उन वित्तीय व्यय को पूरा करने से मर जाएंगे जो उन पर लगाए गए हैं।
पूरी दुनिया कोविड-19 के प्रकोप के भयानक परिणामों का सामना कर रही है। किसी को यह भी नहीं भूलना चाहिए कि व्यवसाय के मालिक इससे काफी प्रभावित हैं और भारी आर्थिक मंदी और नुकसान का सामना कर रहे हैं। व्यवस्थापकों को अपनी समस्याओं पर गौर करना चाहिए ताकि उन्हें इस संकट से निकालने का रास्ता मिल सके, उनकी भरपाई भी होनी चाहिए अगर आर्थिक रूप से नहीं तो किसी और माध्यम से।
संपादक
Rajesh Jaiswal
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