-सकल दिगंबर जैन समाज के तत्वावधान में वरैया जैन मदिर में सिध्दचक्र महामंडल विधान में आयोजित हुआ पत्नी,बेटा-बेटी मकान सोना चॉदी नही, प्रभु-गुरूधर्म ही साथ आएगा-मुनिश्री

Jul 11 2019

       
    पत्नी,बेटा-बेटी मकान सोना चॉदी नही, प्रभु-गुरूधर्म ही साथ आएगा-मुनिश्री
9 से 16 जुलाई तक आठ दिवसिया श्री 1008 सिध्दचक्र महामंडल विधान महोत्सव मे अर्ध्य समर्पित किए
   ग्वालियर-पत्नी, बेटा-बेटी, मकान सोना-चॉदी नही काम आएगा। प्रभु-गुरू धर्म ही साथ काम आएगा। धर्म के लिए समय देना जीवन को उन्नत बनाना हैं। धर्म से हमारे जीवन आने वाले दुःखो के संकट समाप्त होते है। धर्म का मार्ग हमारे अंतर आत्मा कल्याण को सार्थक करता है। प्रभु की प्रतिदिन पूजा आराधना करने से हमारे षरीर को एक नई ऊर्जा मिलती है। जीवन में धर्म ही सब कुछ है धर्म ज्ञान की सिखा अपने जीवन के हदय अवष्यक उतारना चाहिए। यह विचार मुनिश्री संस्कार सागर महाराज ने आज तीसरे दिन गुरूवार को दाना ओली स्थित दिगंबर वरैया जैन मंदिर में चल रहें आठ दिवसिया श्री 1008 सिध्दचक्र महामंडल विधान महोत्सव में धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। 
   मुनिश्री ने कहा कि संसार के समस्त प्राणी चाहे वो मनुश्य हो, पषु पक्षी हो सुखी होना चाहते है। लेकिन सुख मिलन नही है। सुख प्राप्ति के बारे तीन सबसे बड़ी भं्रातियां है। पहली है कही तो सुख मिलेगा, घर पर नही तो दुकान पर, बगीचे में, सिनेमा में, दूसरे षहर में दूसरे देष में, लेकिन ये तलाष कभी पूरी नही होती है। मुनिश्री ने कहा कि जिस प्रकार हम भोजन ग्रहण करने के पहले पात्र को साफ करते है, वैसे ही जिनवाणी को आत्मसात करने के लिए मलिन मन को साफ करना होगा। वैसे ही अगर हमें धर्म रूपी खेती करना है तो मन को निर्मल व षुद्ध बनाना होगा। प्रवचनो से पूर्व आयोजन समिति के श्रमण संस्कृति परमार्थ के अध्यक्ष इंजी, भरत जैन, सचिव वीरेंद्र जैन, नीरज जैन, जयकुमार जैन एवं वरैया मदिर समिति के सुभाश वरैया, कमल वरैया, चंद्रप्रकाष जैन, पारस जैन, प्रवक्ता सचिन जैन आदर्ष कलम ने मुनिश्री के चरणो में श्रीफल चढ़ाकर आर्षिवाद लिया। 
इंद्रो ने जयकारो के साथ अभिशेक, मुनिश्री ने अपने मुखबिंद से षांतिधार कराई
       जैन समाज प्रवक्ता सचिन जैन ने बताया कि महोत्सव के तीसरे दिन विधानचार्य पं0 सुनील भडारी ने ने मंत्रउच्चरण के साथ भगवान जिनेन्द्र का अभिशेक सौधर्म इंद्रा मुकेष जैन लहार सहित इंद्रो जयकारो के साथ किया। मुनिश्री संस्कार सागर ने अपने मुखबिंद से भगवान षंातिधार विजय कुमार जैन जौरावालो के परिवार द्वारा कि गई। अभिशेक उपरांत संगीतकार अनुपमा जैन ने भक्तिमय भगवान की आरती कराई।
  महोत्सव के तीसरे दिन इंद्र-इंद्राणियो ने मिलकर 32 अर्घ्य किये समर्पित 
       इस विधान में इंद्र-इंद्र्रणियो ने मुकुट माला एवं पीले वस्त्र धारण कर भक्ति भाव के साथ पूजा आर्चन कर सिध्दप्रभू की आराधान करते हुये 32 महाअर्घ्य भगवान जिनेन्द को समर्पित किए। षाम को भगवान का भजन गुणगान कर दीपो से आरती उतारी गई।
प्रतिदिन अष्टद्रव्यों से देंगे अर्घ्य 
   जैन समाज के प्रवक्ता सचिन जैन ने बताया कि अष्टान्हिका श्री 1008 सिध्दचक्र महामंडल विधान पूजन में अष्ट द्रव्यों से पूजा की जाती है। ये अष्टद्रव्य हैं- जल, चंदन, अक्षत, पुष्प, नैवेद्य, दीप, धूप और फल। इन द्रव्यों का अर्घ्य दिया जाता है। अष्टान्हिका अनुष्ठान की रचना कविवर संतलाल ने संस्कृत में की थी। बाद में हिंदी अनुवाद हुआ। अनुष्ठान के दौरान संगीत के साथ गुणानुवाद होता है, वहीं उनका भावार्थ भी समझाया जाएगा।