तप, संयम, साधना एवं आत्मा का कल्याण करने का पर्व है-मुनिश्री

Jul 07 2019


   ग्वालियर-जैन धर्म में चातुर्मास के 4 माह संतों के लिए तप, संयम, साधना एवं आत्मा का कल्याण करने का पर्व है। ग्वालियर में ज्ञान की गंगा का श्रावक, ध्यान, तपस्या कर लोगों को धर्म मार्ग की ओर प्रेरित करेंगे। चातुर्मास में संतों के प्रवचन से जैन समाज के व्यक्ति को समागम का मौका मिलता रहेगा। संतों की वाणी व्यक्ति के अंदर आत्मा शरीर कषाय, पापों को धोने का काम करेगा। चातुर्मास मे व्यक्ति धर्म के रथ पर सवार होकर आत्म साधना में रहकर ध्यान और तप से आत्मा कल्याण करेगे। यह बात मुनिश्री संस्कार सागर महाराज ने आज रविवार को सिकंदर कंपू स्थित जैन मदिर में संबोधित ंिकया।
चातुर्मास के लिए मुनिश्री संस्कार सागर महाराज का 9 जुलाई भव्य नगर प्रवेश होगा
   जैन समाज के प्रवक्ता सचिन जैन आदर्ष कलम ने बताया ंिक मुनिश्री संस्कार सागर महाराज का भव्य मंगल प्रवेश 9 जुलाई को प्रातः 7ः00 बजे से माधोगंज जैन मंदिर से गाजेबाजे के साथ शुरू होगी। मंगल प्रवेष में पुरूश व्हाईट परिधान एवं महिलाए केषरिया सॉडी में सम्मालित होगी। मंगल प्रवेष षोभायात्रा माधौगंज से षुरू होकर महाराज बाड़े, मोर बाजार, दाना ओली, नई सड़क स्थित चंपाबाग धर्मशाला पहुचेगी! षोभायात्रा पहुचने पर मुनिश्री के मंगल प्रवचन होंगे! वही 16 जुलाई मंगलवार को प्रातः 8 बजे से 11 वां संस्कार वर्ष योग कलश स्थापना एवं गुरु पूणिमा कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा!
चातुर्मास साधना व तप आराधना का अहम पर्व है’
   चातुर्मास पर्व यानि चार महीने का पर्व जैन धर्म का एक अहम पर्व होता है। इस दौरान एक ही स्थान पर रहकर साधना, आराधना, तप और पूजा पाठ अहम पर्व है। वर्षा ऋतु के चार महीने में चातुर्मास पर्व मनाया जाता है। वर्ष 2019 में जैन चातुर्मास पर्व 15 जुलाई से शुरू होंगे जो आने वाले चार महीने तक चलेंगे।
क्यों मनाया जाता है चातुर्मास पर्व
  जैन धर्म पूर्णतः अहिंसा पर आधारित है। जैन धर्म में जीवों के प्रति शून्य हिंसा पर जोर दिया जाता है। जैन धर्म के अनुसार बारिश के मौसम में कई प्रकार के कीड़े, सूक्ष्म जीव जो आंखों से दिखाई नहीं देते वह सर्वाधिक सक्रिय हो जाते हैं। ऐसे में मनुष्य के अधिक चलने-उठने के कारण इन जीवों को नुकसान पहुंच सकता है। अतः इन जीवों को परेशानी ना हो और जैन साधुओं के कम से कम हिंसा हो इसलिए चातुर्मास में चार महीने एक ही जगह रहकर धर्म कल्याण के कार्य किए जाते हैं। इस दौरान जैन साधु किसी एक जगह ठहरकर तप, प्रवचन तथा जिनवाणी के प्रचार-प्रसार को महत्त्व देते हैं।