सकल जैन समाज की ओर से मंगल प्रवचन माधौगंज दिंगबर जैन मदिर में हुए नफरत के बदले नफरत और प्रेम के बदले प्रेम मिलता है-राश्ट्रसंत
Jun 26 2019
ग्वालियर-दुनिया मे क्रिया की प्रतिक्रिया होती है, जैसा हम दूसरों के साथ व्यवहार करते है। वहीं व्यवहार लौट कर हमारे पास आ जाता है। दूसरों का जो अहित सोचता है, उसका स्वयं अहित हो जाता है जो दूसरों का अहित करता हैं उसका स्वयं का अहित हो जाता है। नफरत के बदले नफरत और प्रेम के बदले प्रेम मिलता है। जैसा फल बीज बोया जाता है वैसा फल मिलता है। इसलिए अपने जीवन के प्याले मे कटुता का जहर नहीं मधुरता का अमृत भरिए। यह विचार राश्ट्रसंत मुनिश्री विहर्श सागर महाराज ने आज बुधवार को माधौगंज स्थित दिंगबर जैन मदिर में धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
मुनिश्री ने कहाकि अपने षरीर को स्वस्थ रखने के लिए भोजन पानी पर ध्यान दीजिए। षाकहारी भोजन करने से षरीर स्वस्थ रहता है। हमेषा मां के हाथ से भोजन करना चाहिए एवं मां के मुख से षिक्षा ग्रहण करना चाहिए, जिसे गुरू के वचनों पर विष्वास होता है। वही सच्चा महात्मा है। बिना विष्वास के कोई रिष्त नही चलता। आज घर समाज एवं परिवार टूट रहें है, इसका मुख्य कारण विष्वास की कमी है जहॉ संदेष की भूत प्रवेष कर जाता है वहां मित्रता समाप्त हो जाती है।
जैन समाज के प्रवक्ता सचिन जैन ने बताया ंिक मुनिश्री विहर्श सागर महाराज, मुनिश्री विजयेष सागर महाराज संसघ का आज बुधवार को माधौगंज जैन मदिर में मंगल प्रवेष हुआ। जैन समाज के लोगो ने मुनिश्री की आगवानी कर पाद प्रक्षालन कर भव्य आरती उतारी कर आर्षिवाद लिया।
मनुश्य जन्म पाना तभी सार्थ है जब हम अच्छें बने-
मुनिश्री विजयेष सागर महाराज ने धर्म सभा को संम्बोधित करते हुए कहा ंिक हमारा मनुश्य जीवन मिलना तभी सार्थक होता है जब हम एक अच्छें इंसान बने। मानव का जीवन अन्य षरीरों की अपेक्षा दुर्लभ होता है। इसलिए हमें धर्म का स्वरूप जानकर अपने अस्तित्व का अनुभव करके जीवन को उपलब्ध होना और भी दुर्लभ हैं। मां और महात्मा मे अंतर होता है। मां वह है जो नौ माह तक गर्भ में रखकर स्वयं पीड़ा सहती है और हमे जन्म देती है। महात्मा वह होता है जो हमारे जीवन मे अंधकार का पर्दा हटाकर ज्ञान रूपी नेत्र देकर अंर्तदृश्टि को खोल कर सत्य रूपी ज्ञान कराते है। हम संत के बताए मार्ग पर चल कर मोक्ष को पा सकते हैं। इसमें साधू संत हमसे कोई अपेक्षा नही रखते। आने के साथ जाना, उगने के साथ डूबना, उठने के साथ गिरना, जन्म के साथ मरना दिन के साथ रात होना नियति है।
संपादक
Rajesh Jaiswal
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