मनुश्य को मसाधना एवं आराधना दोनों करना चाहिएः मुनिश्री

Apr 19 2019



           ग्वालियर- साधना एवं आराधना दो प्रकार के तप है। साधना मन से होती है और आराधना वचन और काया से होती है। अंतकाल से अभी तक आराधना ही होती रही है। साधना नहीं हुई है। साधना हो जाती तो परित्त संसारी हो जाते। यह विचार जैन मेडिटेषन विहसंत सागर मुनिराज ने आज गुरूवार को तानसेन नगर में  धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। 
          मुनिश्री ने कहा कि पुण्य करना चाहिए। मनुष्य को धर्म करना चाहिए। धर्म करते हुए जीव पुण्य का फल प्राप्त कर लेता है। पुण्यकर्ता जीव सिर्फ पुण्य का फल प्राप्त करता है। इसलिए साधना से जुड़ें।हमें सम्यकदृष्टि जीव बनना चाहिए। सम्यकदृष्टि जीव पाप नहीं करता है, पाप करते हैं, या अंजाने में हो जाता है, हमें पाप नहीं करना चाहिए। 
पाश्चात्य संस्कृति व गलत संस्कारों से दूर रहें-ः मुनिश्री ने कहा कि संस्कृति के साथ संस्कार इस भारत की धारा पर जिंदा है। इसलिए देश भी आगे बढ़ रहा है। आज जो विकास देश ने किया है, वह कभी नहीं हुआ है। विशेष कर शिक्षा के क्षेत्र में काफी प्रगति की है, लेकिन भारतीय संस्कारों के मामले में लोग पिछड़ रहे हैं। शिक्षा के साथ भारतीय संस्कृति व संस्कार आवश्यक है। माता-पिता अपने बधाों को संस्कारित अवश्य करें। जन्म से जैन है, लेकिन कर्म से भी जैन बनो। 
मुनिश्री ने कहा कि कहा कि शिक्षक तो लौकिक शिक्षा देते हैं। संस्कार तो माता-पिता ही विशेष रूप से देते हैं। गर्भवति माता को इस अवधि में न केवल अच्छे संस्कार और कार्य करना चाहिए, बल्कि इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि कही गलत स्थान पर नहीं जाएं। क्योंकि गर्भ में पल रहा बालक आपके इस अवधि के कार्यो को अपने जीवन में करेगा। इसलिए अच्छे भाव रखकर सात्विक भोजन करें। प्रभु की आराधना करें। अभिमन्यु की माता को गर्भ काल में निंद लगने के कारण चक्र में प्रवेश करना तो आ गया था, लेकिन चक्र में से निकलना नहीं आया था। मुनि श्री ने कहा कि बधो तो उस माटी की तरह है, जिन्हे ंजैसा ढाला जाए वैसे ढल जाते हैं। बधो भी जैसे संस्कार पाते है, वैसे ही वह बनते हैं। मिट्टी से जहां मंगल कलश बनता है, वहीं चिलम भी। कलश मांगलिक कार्यो के साथ-साथ प्रभु की आराधना में भी उपयोग किया जाता है। वहीं चिलम स्वयं तो जलती है, और व्यक्ति को भी जलाती है। बेटा या बेटी अच्छी शिक्षा व संस्कारों के साथ उधा शिखर पर पहुंचता है, तो न केवल उसका अपितु माता-पिता, परिवार एवं देश का नाम भी संचालिता होता है। संस्कार बधाों की नीव होता है। अच्छे संस्कार से अनेक जुड़कर अपना जीवन सफल करते हैं। 
डी.डी नगर में प्रवचन होगे, मुनिश्री के प्रतिदिन ये रहेगे कार्यकाम
      जैन समाज प्रवक्ता सचिन आदर्ष कलम ने बताया कि मुनिश्री विहसंत सागर एवं मुनिश्री विष्वसूर्य सागर महाराज डी.डी नगर स्थित जैन मंदिर में मंगल प्रवचन प्रात 8.30 से 9.30 तक होगे। इसके बाद 10 बजे से आहारचर्या, दोपहर 3.30 बजे से तत्वचर्चा एवं सॉयकाल 6.15 से आचार्य भक्ति, गुरूभक्ति एवं आरती होगी।