भारतीय सिक्के के इतिहास पुस्तक का विमोचन

Apr 09 2019


    भारतीय सिक्को का इतिहास जो कि विश्व में सबसे पुराना है और इन सिक्कों के माध्यम से ही हम भारत या किसी अन्य देश का इतिहास पता कर सकते हैं सिक्के हमारे इतिहास से रूबरू करने का सबसे अहम माध्यम है भारत के सिक्कों के इतिहास पर प्रथम हिंदी भाषी रंगीन पुस्तक लेखन पर्यटन टुडे के संपादक एवं भारतीय संस्कृतिक विधि के सह संयोजक शिवपुरी अध्याय के डॉ नीलकमल माहेश्वरी एवं पुस्तक परिकल्पना डॉ एच बी माहेश्वरी तथा भारतीय सांस्कृतिक निधि एवं राष्ट्रीय मुद्रा परिषद के सहयोग से पर्यटन टुडे प्रकाशन की पुस्तक का विमोचन राजस्थान के गुलाबी शहर जयपुर के बिरला ऑडिटोरियम में गत दिवस प्रातः 11रू00 मुंबई के विश्व विख्यात सिक्कों के जानकार श्री दिलीप राजगौर एवं गिरीश वीराए बैंग्लोर से आरची मारूए चंद्रपुर से श्री अशोक सिंह ठाकुर राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य भारतीय सांस्कृतिक निधि एवं जयपुर के सिक्कों के संग्रहकरता श्री प्रकाश कोठारी जी द्वारा किया गया इस अवसर पर विशेष रूप से राष्ट्रीय मुद्रा परिषद के अध्यक्ष श्री गिरीश शर्मा इंदौर डॉ एचबी माहेश्वरी राज्य संयोजक भारतीय संस्कृति  निधि मध्य प्रदेश एवं भारत के हर प्रांत से पधारे सिक्कों के संग्रह करता इस अवसर पर मौजूद थे श्री दिलीप राजगौर ने बताया कि भारत में 90ः सिक्कों की किताबें अंग्रेजी भाषा में है और हिंदी भाषा की इस पुस्तक को प्रकाशित करने का साहस करना बहुत कठिन कार्य और पुस्तक का मूल्य मात्र रुपए 99. रखना इससे भी कठिन है क्योंकि इतनी कम लागत में कोई पुस्तक उपलब्ध कराना इतिहास की बड़ा कठिन कार्य है
    लेखक डॉ. नीलकमल माहेश्वरी ने पुस्तक के बारे में बताया कि     भारत का इतिहास जितना प्राचीन व रोचक है, भारतीय सिक्कों का इतिहास भी उतना ही प्राचीन एवं रोचक है।
    सिक्के वाणिज्य, विनिमय एवं व्यापार का माध्यम होते हैं, इसीलिए सिक्कों का बड़ा महत्व है। चूँकि सिक्कों पर भाँति-भाँति के चिन्ह, तिथियाँ और राजाओं तथा देवी-देवताओं की आकृतियाँ होती हैं, इसलिए ये सिक्के व्यापार के साथ-साथ इतिहास जानने के प्रबल साक्ष्य भी होते हैं।
    राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक और सांस्कृतिक सभी प्रकार की जानकारी इन सिक्कों के माध्यम से पाई जाती है। किस राजा ने कब तक षासन किया, किन-किन सीमाओं तक उसका राज्य-विस्तार था, वह किसका उत्तराधिकारी था, उसके समय में वस्त्राभूशण, केष-विन्यास और मनोरंजन का क्या स्वरूप था, उस काल में धर्म की क्या स्थिति थी, राजा किस देवी या देवता की पूजा करता था, आदि-आदि अनेक प्रष्नों का समाधान विभिन्न युगों के सिक्कों से हो जाता है। सिक्कों की संख्या, उसकी धातु और उस धातु की षुद्धता अथवा मिलावट से उस काल की आर्थिक स्थिति का अन्दाजा लगाया जा सकता है। विषेश अवसरों पर ढाले गए सिक्कों से विभिन्न प्रकार की सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का पता चलता है।
    दिनों-दिन बढ़ती महँगाई के कारण प्रायः पुराने जमाने के सिक्कों की धातु का मूल्य उन सिक्कों के मूल्य से ज्यादा हो जाता है। तब लोग अधिक मूल्य पाने के लिए सिक्कों को गला देते हैं। चूँकि सिक्के इतिहास की जानकारी के लिए महत्वपूर्ण होते हैं, इसलिए इनकी रक्षा होनी चाहिए। यह बात जब तक लोगों को पता नहीं होगी, तब तक वे पुराने सिक्कों को गलाकर अपने देष के इतिहास की धरोहर को नश्ट करते रहेंगे। अतएव सिक्कों के बारे में बचपन से ही सभी देषवासियों को बतलाया जाना आवष्यक है।
    आगे आने वाले भविश्य में सिक्कों का अस्तित्व और भी अधिक खतरे में है। धातुएँ इतनी महँगी होती जा रही हैं कि उनसे बनाए गए सिक्कों का मूल्य कुछ ही दिनों में बढ़ जाता है और तब सिक्कों के गलाए जाने की सम्भावना ज्यादा बढ़ जाती है। सम्भव है कि भविश्य में केवल कागज, प्लास्टिक, पोलीमर आदि के नोट ही रह जाएँ और प्रचलन से धातु के सिक्के समाप्त हो जाएँ और तब तो अपने पुराने सिक्कों की सुरक्षा और भी अधिक आवष्यक होगी। कागज की मुद्रा विहीन संस्कृति के प्रचार-प्रसार से भविश्य में धातु के सिक्कों के साथ-साथ नोटों का चलन भी बन्द हो जाएगा। इन्टरनेट बैंकिंग प्रणाली से तो इनकी आवष्यकता ही नहीं रह जाएगी।