कल्चरल सस्टेनेबिलिटी विकसित करने की जरूरतः डॉ देशमुख आईटीएम यूनिवर्सिटी में दो दिवसीय इंटरनेषनल कॉन्फ्रेंस की हुई षुरूआत 80 प्रतिभागी ले रहे हैं भाग।
Mar 29 2019
कल्चरल सस्टेनेबिलिटी विकसित करने की जरूरतः डॉ देशमुख
आईटीएम यूनिवर्सिटी में दो दिवसीय इंटरनेषनल कॉन्फ्रेंस की हुई षुरूआत 80 प्रतिभागी ले रहे हैं भाग।
पहले दिन हुई सस्टेनेबल डवलवमेंट के लिए टेक्नोलॉजी, मैनेजमेंट और इनोवेषन पर हुई चर्चा।
’ हमारे देश में कई असमानताओं के बाद भी भारत तीसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी के रूप् में उभरा है। हमें अपने देश पर गर्व करना चाहिए कि हमारे यहां पुरातन काल से ही पारंपरिक दवा या औषधियों का सिस्टम आस्तित्व में है। इसके अलावा अक्सरहम तीन प्रचलित सस्टेनेबल सिस्टम की बात करते हैं, जो इकोनॉमिक,एनवायरनमेंटल और सोशल सस्टेनेबल है, लेकिन चौथा सिस्टम भी बहुत महत्वपूर्ण है, जिसका नाम कल्चरल सस्टेनेबलिटी है। यह तीनों सस्टेनेबल सिस्टम को एक साथ जोड़ता है। अगर हम अपने कल्चरल बिलिफ्स व प्रेक्टिसेस, हेरीटेज कंजरवेशन को सस्टेनेबल रखने का प्रयास करते हैं, तो उससे जुड़ी सभी सस्टेनेबिलिटी जैसे प्लांट्स, एनीमल, इकोसिस्टम आदि का भी ख्याल रखेंगे। इसलिए नॉलेज और अवेयरनेस से बेहतर सस्टेनेबल डवलपमेंट के लिए रिसर्च करते रहें।
यह विचार व्यक्त कर रहे थे एबीवी-इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इंर्फोमेशन टेक्नोलॉजी एंड मैनेजमेंट के डायरेक्टर प्रो. एसजी देशमुख का, जो आईटीएम यूनिवसिटी में आयोजित इंटरनेषनल कान्फ्रेंस के षुभारंभ अवसर को मुख्य अतिथि के रूप में सम्बोधित कर रहे थे। टेक्नोलॉजीकल इनोवेषन एंड मैनेजमेंट फॉर सस्टेनेबल डवलपमेंट (ह्यूमन हैबीटेट, हेल्थ एग्रीकल्चर एंड इकेनोमी) पर यह दो दिवसीय इंटरनेषनल वर्कषॉप आयोजित की जा रही है। पहले दिन लियानार्डो द विंची ब्लॉक स्थित उस्ताद अलाउद्दीन खां ऑडीटोरियम में वर्कषॉप का औपचारिक उद्घाटन समारोह रखा गया।
इस मौके पर स्कूल ऑफ स्टडीज फूड टेक्नोलॉजी, जीवाजी यूनिवर्सिटी के प्रो डॉ जीबीकेएस प्रसाद ने कहा कि किस तरह एथनोमेडिसिन समाज के लिए उपयोगी हो सकती है। मानवीय जीवन के सभी चरणों में स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारकों जो मानव स्वास्थ्य खराब करने के लिए जिम्मेदार हैं के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि आज के आधुनिक दवाओं से ज्यादा अच्छी बरसों पुरानी पारम्परिक दवाएं व विधियां हैं, जो औषधियों से तैयारी होती थीं, जिनसे बिना साइड इफेक्ट के बीमारियां ठीक हो जाती थीं आज की दवाओं ने पारम्परिक औषधियों को रिप्लेस तो किया है, लेकिन उनसे साइड इफेक्ट्स बढ़ रहे हैं।
कार्यक्रम में मौजूद क्रिस्ट यूनिवर्सिटी, बैंगलोर के सेंटर फॉर रिसर्च के एडीशनल डायरेक्टर प्रो टोनी सेम जॉर्ज ने बताया कि न्यूरो साइंस किस तरह ह्यूमन फंक्शंस को फिर से शुरू करने में मदद करता है, जब हमारा व्यवहार या कार्य प्रभावित हो रहे हों। उन्होंने ह्यूमन साइक्लॉजी पर भी प्रकाश डाला।
आईटीएम यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर प्रो केके द्विवेदी ने कहा कि किस तरह नॉलेज से एकजुट होकर देशों को विकसित करने व विभिन्न क्षेत्रों के माध्यम से समाज की गरीबी दूर कर समृद्धि ला सकते हैं। मैनेजिंग डायरेक्टर डॉ दौलत सिंह चौहान ने महात्मा गांधी पर लिखित किताब ’बुनियादी तालीम’ का उदाहरण देते हुए कि कहा कि इसमें व्यवहारिक तौर पर सस्टेनेबिलिटी के उदाहरण बताए गए हैं। ध्यान रखें कि प्रत्येक विचार भी हमारी सस्टेनेबिलिटी
उल्लेखनीय है कि वर्कषॉप में 80 विषय विषेषज्ञ भाग ले रहे हैं। ये सभी प्रतिभागी देष के नॉमिनेटेड एक्सपर्ट है। जो इन मुद्दों पर स्टेटस पेपर प्रस्तुत करेंगे। इस मौके पर आर्गेनाइजिंग सेकेट्ररी डॉ रिचा कोठारी, फाउंडर चेयरमैन टिम्स डॉ आरडी गुप्ता व विभिन्न विभागों के डीन, एचओडी व फैकल्टी उपस्थित हरे।
चार विभाग के हुए ओरल प्रजेंटेशन
टिम्स-7 में प्रमुख तौर पर लाइफ साइंस एंड फार्मेसी, एगंीकल्चर, मैनेजमेंट आर्किटेक्चर डिपार्टमेंट के एक्सपर्ट्स ने लेक्चर दिए व पेपर प्रजेंटेशन दी। पहले दिन लगभग 50 ओरल प्रजेंटेशन व 100 पोस्टर प्रजेंटेशन हुए। लाइफ साइंस एंड फॉर्मेसी में बोटोनिकल ड्रग्स इन मैनेजमेंट ऑफ टाइप टू डायबिटीज मेलीटस पर डॉ प्रसाद, रोल ऑफ फाइबर रिच डाइट्स इन मैनेजमेंट ऑफ बॉडी मास इंडेक्स एंड वेस्ट सरकमफेरेंस ऑफ ह्यूमन टाइप टू डायबिटीज पर श्वेता चौधरी व शैलजा जैन, थेराप्यूटिक एफीशियेंसी ऑफ ओवरनाइट सोक्ड एक्यूस एक्सट्रक्ट ऑफ ट्रइगोनेलाफोनमग्रेसम इन स्ट्रेप्टोजोटोसिन इंडक्ड डायबिटीज पर प्रमोद कुमार सिंह व एकता रावत व अन्य ने लेक्चर दिया।
प्रोडक्टिविटी के लिए सॉइल हेल्थ पर करना होगा काम
सस्टेनेबल एग्रीकल्चर व फूड सिक्योरिटीज पर विशेष व्याख्यान के अंतर्गत्त आईजीकेवी, रायपुर के पूर्व प्रो आरबी शर्मा ने सॉइल हेल्थ एंड एग्रीकल्चरल सस्टेनेबिलिटी पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि दूषित पानी, हवा, इनआर्गेनिक फर्टिलाइजर व अन्य कारणों से सॉइल हेल्थ प्रभावित हो रही है। जिस कारण एग्रीकल्चरल प्रोडक्टिविटी कम हो रही ऐसे में सॉइल हेल्थ पर काम करना बहुत जरूरी है।
सीपीआरआई रीजनल स्टेशन ग्वालियर के प्रिंसिपल साइंटिस्ट डॉ एसपी सिंहने डॉ फार्मिंग सिस्टम में बदलाव की आवश्यकता बताई ताकि 2050 में लगभग 1.6 मीलियन जनसंख्या को हम अन्न उपलब्ध करवा सकें। इसके लिए मोनो एग्रीकल्चर की जगह मेनी एग्रीकल्चर को विकसित करना होगा यानि एक फसल की जगह कई फसलें उगानें से बायोडाइवर्सिटी, सॉइल हेल्थ व सस्टेनेबिलिटी पर सकारात्मक असर पड़ेगा।
संपादक
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