प्रत्याशियों की घोषणा की संहिता

Mar 19 2019

 

देश में आम चुनावों की घोषणा के साथ ही प्रत्याशियों के नाम की घोषणा भी होना चाहिए एइस बारे में चुनाव आयोग का हस्तक्षेप अब तक नहीं हुआ है ण्श्मोदी है तो मुमकिन हैश्में आस्था रखने वालों  के युग में ये असम्भव काम भी सम्भव हैण्एक रिवाज  बन गया है कि राजनितिक दल अपने प्रत्याशी ऍन अंतिम क्षणों तक घोषित करते हैं एजबकि सबको पता होता है कि चुनाव कब होना है ण्
प्रत्याशियों के नामों की घोषणा के लिए चुनाव आयोग को कम से कम छह माह पहले की बाध्यता डालना चाहिए ताकि मतदाता को अपने प्रतिनिधि के बारे में जानकारी हासिल करने और निर्णय करने में सहूलियत हो एनयी आचार संहिता के मुताबिक़ प्रत्याशियों को अपने आपराधिक रिकार्ड की आम घोषणा भी करना पड़ती है एये सब होता है लेकिन इतनी जल्दी में होता है कि मतदाता न कोई सूचना ढंग से पढ़ पाता है और न ही उसकी विवेचना   कर पाता हैण्
मुझे याद है कि 1984 .85  के आम चुनाव में कांग्रेस ने नामांकन के पपांडरः मिनिट पहले तक अपने प्रत्याशियों के नामों की घोषणा कर न सिर्फ सबको चौंकाया था बल्कि एक सम्भरम की स्थिति पैदा कर दी थीएबाद में सभी राजनितिक दलों ने इसे अपना लिया ण्प्रत्याशियों के नामों की घोषणा ताश के खेल की तरह हो गयी ण्यानि सब अपनी तुरुप छिपाकर कहने के आदी हो गए हैं एइस खेल में मतदाता ठगा जाता है एउसे अपने भावी जनप्रतिनिधि के बारे में जांच.पड़ताल का समय ही नहीं मिल पाता ण्
लोकतंत्र की मजबूती और चुनाव प्रक्रिया को और पारदर्शी बनाने के लिए आवश्यक है कि सभी राजनीतक दल हर चुनाव से कम से कम छह माह पहले प्रत्येक क्षेत्र के लिए अपने प्रत्याशियों के नामों की घोषणा करें ताकि एक तो प्रत्याशी को बहुसंख्यक मतदाता तक पहुँचने का अवसर मिल सके और मतदाता को भी अपने प्रतिनिधि के बारे में फैसला करने का समय मिल पाए ण्अभी स्थिति ये है कि नाम वापसी के बाद किसी भी प्रत्याशी को मतदाताओं तक पहुँचने के लिए बामुश्किल एक पखवाड़े का समय मिल पाता है एइतने कम समय में मतदाता अपने बीच खड़े प्रत्याशियों के चेहर.मोहरे तक नहीं पहचान पाते ण्
समय के साथ जन प्रतिनिधित्व कानों में संशोधन होते रहे हैंएइस आम चुनाव के बाद एक संशोधन प्रत्याशियों के नामों की घोषणा के बारे में भी होना चाहिएण्बेहतर तो ये हो कि चुनाव आयोग प्रत्याशियों का भी पंजीयन चुनाव से छह माह पूर्व कराये और इस अवधि में अपने स्तर पर भी पड़ताल करे ण्केवल हलफनामों से काम नहीं चलता ण्चुनाव आयोग कभी भी किसी भी प्रत्याशी से उसकी आय के बारे में नहीं जान पाता एउसके पास इतना समय भी नहीं होता कि प्रत्याशी द्वारा दिए गए तथ्यों की पड़ताल की जा सके  ण्नतीजा चुनाव बाद याचिकाओं का ढेर लग जाता है एइसे नए नियम बनाकर टाला जा सकता है ण्
चुनाव कानूनों में संशोधन न हो पाने के कारण आज भी हमारी चुनाव प्रक्रिया में अनेक विसंगतियां हैंण् न हम चुनाव को जातिवाद से मुक्त करा पाए हैं और न प्रत्याशी के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता ही तय करा पाए हैंण्हम बार.बार लोकतंत्र की झूठी दुहाई देकर इससे बचते रहते हैं ण्ण्नतीजा ये होता है कि हमारे चुने हुए जन प्रतिनिधि कभी.कभी तो शपथ तक नहीं पढ़ पातेएएमुख़्यमंत्रियों के सन्देश तक नौकरशाहों को पढ़ना पड़ते हैं ण्पढ़े.लिखे लोगों के चुनाव प्रक्रिया में शामिल होने से लोकतंत्र कमजोर नहीं बल्कि मजबूत ही होता है ण्
भारत की चुनाव प्रक्रिया एक तरह की प्रयोगशालाओं से गुजरती रहती है एअनेक बार इसके सुफल मिलते हैं तो अनेक बार दुष्परिणाम भी सामने आते हैं ण्कभी विश्वास मजबूत होता है तो कभी डगमगा जाता है ण्हमारी वोटिंग मशीने चाहे जब अविश्वसनीय कही जाने लगतीं हैण् हालानिक बेचारी पूरी ईमानदारी से काम करती नजर आती हैं ण्मै तो कहता हूँ कि आने वाले दिनों में मतदान के लिए आन लाइन व्यवस्था भी चुनाव आयोग को करना चाहिएएक्योंकि जब चुनाव आयोग मतदाता सूची में नाम जुड़वाने और हटवाने के लिए आम आदमी को आन लाइन सुविधा देता है तो मतदान के लिए इसका इस्तेमाल क्यों नहीं किया जासकता घ्जब हम मुद्रा का विनिमय आन लाइन कर सकते हैं तो अपना मतदान भी ान लाइन करने से वंचित क्यों रखे जा रहे हैंण्जो सावधानियां बैंकें अपना रहीं हैं उन्हें चुनाव आयोग भी अपना सकता है ण्मतदान का विकल्प मतदाता के हाथ में होना चाहिए कि उसे मतदान बूथ पर जाकर मतदान करना है या घर बैठकर