लएनआईपीई मे “जीवन दर्शन व खेलों की इसमें भुमिका” पर व्याख्यान

Mar 15 2019


लक्ष्मीबाई राष्ट्रीय शारीरिक शिक्षा संस्थान में आज “जीवन दर्शन व खेलों की इसमें भुमिका” विषय पर डॉ. वेदप्रकाश मिश्रा (बी.सी रॉय राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता, व वर्तमान में माननीय कुलाधिपति कृष्ण इंस्टीटयुट ऑफ मेडिकल साइंस, डीम्ड विश्वविद्यालय, कराड, सतारा जिला, महाराष्ट्र) का व्याख्यान हुआ। व्याख्यान में संस्थान के कुलपति प्रो. दिलीप कुमार डुरेहा, प्रभारी कुलसचिव प्रो. विवेक पांडे, प्रो. एस मुखर्जी (डीन, एकेडमिक्स, एलएनआईपीई) भी विशेष तौर पर उपस्थित रहें। व्याख्यान के आरंभ में डॉ. मिश्रा का संस्थान आगमन पर स्वागत व सम्मान किया गया जिसके उपरांत संस्थान के कुलपति प्रो. दिलीप कुमार डुरेहा का संबोधन हुआ। अपने संबोधन में कुलपति प्रो. डुरेहा ने कहा कि हमें प्रसन्नता हैं कि हमारे मध्य आज डॉ मिश्रा जी जैसी शख्सियत हैं। शारीरिक शिक्षा व मेडिकल साइंस जुडे हुए क्षेत्र हैं और हमारे विचार में यदि हमारे शोधार्थी आपके शोधार्थियों के साथ शोध/अनुसंधान करें तो यह देश व समाज के फलप्रद होगा अंतः हम आपसे एमओयू के लिए निवेदन करते हैं। आपका धन्यवाद कि आपने अपने व्यस्तम समय में से बहुमूल्य समय निकालकर संस्थान आए और संस्थान को अनुग्रहित किया। कुलपति प्रो. डुरेहा के व्याख्यान के उपरांत डॉ. मिश्रा का व्याख्यान हुआ अपने व्याख्यान में डॉ. मिश्रा ने सर्वप्रथम कुलपति प्रो. डुरेहा व संस्थान को धन्यवाद किया और कहा कि मैं आपका आभारी हुं कि आपने हमें यहां आमंत्रित व सम्मानित किया। यह संस्थान अपने आप में अत्यंत ही विशेष, गौरवशाली व ऐतिहासिक हैं। ऐसे संस्थानों में जाना किसी तीर्थयात्रा से कम नही। आप बच्चे अत्यंत ही सौभाग्यशाली हैं कि आप ऐसे संस्थान का हिस्सा हैं। मैं अपने आप को आपके क्षेत्र में कॉम्पिटिटिव नहीं मानता फिर भी मैने यहां आना स्वीकार किया क्योंकि मुझे नव शिक्षाविद्ों, शोधार्थियों व बच्चों से संचार स्थापित करना पसंद हैं। मैं आप छात्रों को यह बताना चाहुंगा कि किसी भी देश व समाज का भविष्य क्या होगा, यह उस देश/समाज के युवा पर निर्भर होता हैं। युवा अर्थात युवा मन, युवा मन यदि सिर्फ अपने जीविकोपार्जन व जीवन के ईद-गिर्द ही विचार करता हैं तो वह स्वयं को सीमाओं में रख रहा हैं और यह मजबूत देश/समाज के लिए सही नही। युवा मन को स्वच्छंद व सीमाओं से पार विचार व परिश्रम की आवश्यक्ता तभी एक मजबूत देश व समाज की परिकल्पना पूर्ण की जा सकती हैं। भारत रत्न स्व. डॉ ए.पी.जे अब्दुल कलाम जी का पंक्तियों का संदर्भ लेते हुए डॉ मिश्रा ने कहा कि डॉ कलाम ने कहा था कि 19वीं सदी ब्रिटिशर की थी क्योंकि वह औपनिवेशिक सम्राज्यवाद का दौर था, 20वीं सदी अमेरिकन था क्योंकि वह तकनीकी उन्नति का दौर था पर 21वीं सदी भारत होगा। अपने जीवन अनुभवों को सांझा करते हुए डॉ. मिश्रा ने कहा कि मैं आपसे दो मूल मंत्रों के बारे में बताना चाहुंगा जिसे मैने अपने स्कुल के दिनों में एक व्याख्यान में ही सीखी थी, पहला हम दूसरों पर विश्वास करते हैं जबकि यदि हमें किसी पर विश्वास करना हैं हमें सदैव सर्वप्रथम अपने आप पर विश्वास करना चाहिए और दूसरा कि हम स्वयं में विशेष हैं। डॉ. मिश्रा ने रावण के पंक्तियों को उदबोधित करते हुए कहा ”एको हम दूजो नास्ति न भूते न भविष्यति“ अर्थात मैं अपने आप में बिल्कुल विशेष हुं न मेरे जैसा कोई हुआ था और न कोई होगा। हमें स्वयं की कीमत ज्ञात होना चाहिए जब हम 18 वर्ष के हो जाते हैं तब हम स्वयं के हस्ताक्षर के लिए उत्तरदायी हो जाते हैं। हमें ऐसे में यह विचार कर लेना चाहिए भविष्य में क्या हमारा हस्ताक्षर सिर्फ हस्ताक्षर ही रहेगा या यह ऑटोग्राफ में तब्दील होगा। हमें स्वयं को व अपनी उपलब्धियों को अभुतपूर्व बनाना होगा तभी वह आगे भी स्मरित किया जाएगा नही तो हम भूतपूर्व हो जाएंगे। अभूतपूर्व रहें तो कभी भी भूतपूर्व नही हो सकते क्योंकि अभूतपूर्व कभी भी भूतपूर्व नही होता। हमें अपने देखने के नजरिए में भी सुधार करना होगा जैसे हम एक शब्द देखते हैं असंभव। अंसभव जैसा शब्द मेरे विचार से हमारे शब्दकोश में होना ही नही चाहिए क्योंकि असंभव से अभिप्राय घुटने टेकने की प्रवृति से हैं और हम तो दो-दो हाथ करने में विश्वास रखते हैं। खेल इसका सबसे अच्छा उदाहरण हैं। डॉ मिश्रा ने छात्रों को 4 डी अर्थात डिसीप्लिन, डिटरमिनेशन, डेडीकेशन व डिवोशन के बारे बताया साथ ही 5 आई व जीरो ऑवर कान्सेप्ट के बारे में विस्तृत जानकारी दी। व्याख्यान के अंत में डॉ. मिश्रा ने सभी को धन्यवाद किया और कुलपति प्रो. डुरेहा के एमओयू के निवेदन को स्वीकार करते हुए कहा कि यह हमारे लिए सम्मान की बात होगी।