प्रचार की नहीं प्रारूप की जरूरत

Mar 12 2019

 

देश  में होने वाले आम चुनावों की घोषणा के बाद राजनीतिक दल चुनाव प्रचार में अपनी समूची ताकत झौंकने में जुट गए हैंएजबकि अब प्रचार की नहीं बल्कि उस प्रारूप की जरूरत है जो नयी सरकार बनाने वालों ने बनाकर रखा हुआ हैएदेश की जनता उसी प्रारूप को जानना चाहती है ण्
देश में ये पहला अवसर है जबकि केंद्र में सत्तारूढ़ दल ने पूरे पांच साल चुनाव प्रचार कियाएसरकार ने कितने काम किये ये कम ही लोगों को पता हैएसरकारी पार्टी के नेताओं ने पूरे पांच साल प्रशासन करते हुए नहीं बल्कि विपक्ष को गरियातेएकोसते हुए व्यतीत किये हैं ण्इन पांच सालों में दावा किया जाता रहा है कि बीते पचपन साल के मुकाबले ज्यादा काम हुआ है ण्पचपन महीने में पचपन साल का काम या तो रोबोट कर सकते हैं या कल्पनाएं ण्हकीकत तो इससे कोसों दूर है ण्काम तो काम की गति से ही होता है एयदि न होता तो आज आप घोषणा के मुताबिक़ मुंबई से अहमदाबाद तक का सफर किसी बुलेट ट्रेन में बैठकर कर रहे होते ण्
बहरहाल बात प्रचार की चल रही थीण्आप जानते हैं कि एक तरफ पुलवामा हुआ और दूसरी तरफ सर्जिकल स्ट्राइक लेकिन चुनाव प्रचार एक दिन के लिए भी नहीं रुकाण्देश ने कोई राष्ट्रीय शोक नहीं मनाता किन्तु सर्जीकल स्ट्राइक को लेकर राष्ट्रव्यापी लहर पैदा करने की कोशिश जरूर की गयी ण्यानि हर अवसर को चुनाव प्रचार के हिसाब से इस्तेमाल किया गया ण्अतीत में एक लोकप्रिय प्रधानमंत्री के अस्थिकलश तक चुनाव प्रचार का औजार बनाये गए लेकिन वे गीली बारूद की तरह चल नहीं पाए पलीता लगाने के बाद भी फुस्स हो गए ण्
देश के एक साधारण मतदाता होने के कारण मेरे पास भी सत्ताएं बदलने का अमोघ अस्त्र वोट है लेकिन इसे हथियाने के लिए राजनीतिक दल पता नहीं कौन.कौन से हथकंडे इस्तेमाल करते हैं ण्चुनाव आयोग इन हथकंडों को रोकने की लाख कोशिश करे किन्तु कामयाब नहीं हो पाताण्चुनाव कार्यक्रम की घोषणा से पूर्व राजनीतिक दलों ने अपनी सरकारों की उपलब्धियों का जितना प्रचार किया उसे देखकर उबकाई आने लगती हैण्टीवीएअखबारएसोशल मीडियाएसड़कएसिनेमाघर यानि की हर माध्यम प्रचार से अटा पड़ा था ण्
चुनाव आयोग को चाहिए की आने वाले दिनों में वो सरकारों से विज्ञापन का ठेका भी ले ले एइससे उसे भी आमदनी हो जाएगी और विज्ञापनों में सुचिता भी  आ जाएगी ण्चुनाव आयोग को आदर्श आचार संहिता को समयानुरूप बनाकर ये भी कहना चाहिए की चुनाव कार्यक्रम की घोषणा के बाद राजनीतिक दल अपनी विगत उपलब्धियों का नहीं आगत प्रारूप का बखान करेंगे ण्राजनीतिक दलों से उनके प्रत्याशियों की सूची भी चुनाव कार्यक्रम की घोषणा से पहले ले ली जाना चाहिए ताकि मतदाता को अपने प्रत्याशी को जानने.समझने का मौक़ा तो मिल सके ण्अभी तो एन नामांकन की अंतिम तिथि तक प्रत्याशी के नाम की घोषणा नहीं हो पाती ण्
चुनाव प्रचार में सादगी पहली शर्त हो तो और बेहतरण्चुनाव का खर्च करोड़ों से घटाकर लाखों तक सीमित हो तो और ज्यादा बेहतर ण्अभी तो आम आदमी चुनाव के बारे में सोच ही नहीं पाता क्योंकि संसद के लिए चुनाव लड़ना यानि करोड़पति होना पहली शर्त हैण् हमारे एक पूर्व सैनिक और पूर्व आईएएस अधिकारी सिर्फ इसीलिए मन मसोस कर रह जाते हैं क्योंकि उनके पास पैसे ही नहीं है ण्वैसे इस बार यदि राजनीतिक दल  पूर्व  सैनिकों को प्रत्याशी बनाकर अपना चुनाव खर्च काम कर सकते हैंएक्योंकि सेना में रहा कोई भी व्यक्ति आम राजनेता के मुताबिक़ ज्यादा ईमानदार साबित हो सकता हैण्
दुर्भाग्य ये है कि आसमान छूने की बातें करने वाले राजनीतिक दल आज भी जातिएधर्म और माली हैसियत के आधार पर अपने प्रत्याशियों का चुनाव कर रहे हैं एआम आदमी का कोई व्यक्ति शायद ही किसी दल का प्रत्याशी बन पाता हो ! बीते पचास साल में चुनाव खर्च लगातार बढ़ते रहने से चुनाव में आम आदमी की भागीदारी भी लगातार कम होती जा रही हैण्  1977  का आम चुनाव इसका अपवाद था ण्अब तो लोकसभा या विधानसभा का चुनाव लड़ना हम जैसे आम आदमी के लिए एक सपने जैसा है 
आम आदमी न चुनाव लड़ सकता है और न उसे प्रभावित कर सकता है ए
चुनाव प्रचार में से यदि भ्रामक तथ्यों को विलोपित करने में चुनाव आयोग कोई प्रभावी कार्रवाई कर पाए तो मुमकिन है कि ये आम चुनाव पहले के चुनावों से कुछ बेहतर साबित होंण्लेकिन ऐसा कर पाना आसान नहींण् चुनाव आयोग को जो शक्तियां चाहिए वे बा.रास्ते संसद ही आती हैं और संसद में जो लोग करोड़ों खर्च कर पहुंचते हैं वे अपने रास्ते में अवरोध क्यों खड़े करना चाहेंगे ण्चुनाव कानूनों में और संशोधन कर यदि उन्हें सम.सामयिक तथा प्रगतिशील नहीं बनाया जाएगा तब तक ये चुनाव लोकतंत्र की मजबूती की दुहाई भले ही देते रहें किन्तु वास्तव में वे ऐसा कर नहीं रहे होतेण्