मलेच्छ ग्वालियररूमलेच्छ नेता

Mar 07 2019

 

शिलालेखों की राजनीति में उलझे ग्वालियर के मौजूदा नेतृत्व के लिए आज लानत देने का दिन हैण् देश के स्वच्छता सर्वेक्षण में ग्वालियर पहले स्थान पर आने के बजाय गिर कर 31  से 59  वे स्थान पर आ गया ण्आपको बता दें की इस समय ग्वालियर का नेतृत्व भाजपा के हाथ में हैंण् भाजपा के सांसद केंद्र में मंत्री हैंएमहापौर भाजपा के हैं और नगरनिगम परिषद भी भाजपा की है और आज से नहीं है पिछले चालीस साल से है 
ग्वालियर को मलेच्छ बनाने की जिम्मेदारी नगर निगम की हैएनगर निगम में बीते पांच साल में धड़ल्ले से भ्र्ष्टाचार पनपाएप्रशासन की मनमानी चली और महापौर गुड़ खाकर बैठे रहे ण्ग्वालियर के लिए लज्जा की बात ये है की उससे छोटे शहर देवासएउज्जैन हुए खरगौन जैसे शहर स्वच्छता सर्वेक्षण में अव्वल और सम्मानजनक स्थान हासिल करने में कामयाब हुए ण्आपको जानकार हैरानी होगी की ग्वालियर को साफ.सुथरा बनाने के नाम पर ये मलेच्छ प्रशासन और यहां के नेताओं ने ३० करोड़ रूपये उड़ा दिए और नतीजा सिफर रहाण्
नेतृत्व की नाकामी की वजह से ही न तो शहर में घर.घर से कचड़ा संग्रहण हो पाया और न ही शहर में कूड़ादान ही लगाए जा सकेण्कचड़ा निष्पादन का प्रबंध तो अंत तक नहीं हुआ तो हो ही नहीं सका एशहर की जनता बेचारी सर्वे के दौरान बेहतर फीड बाइक दे.देकर थक गयी किन्तु शहर की नाक काटने से नहीं बचा सकी एक्योंकि प्रशासन पूरी तरह निकम्मा साबित हुआ ण्
दुर्भाग्य की बात ये है की स्वच्छता सर्वे के नतीजे आने के बाद महपौर विवेक शेजवलकर बेशर्मी के साथ ये कह रहे हैं की हम पीछे रहा गए लेकिन आने वाले दिनों में हम इसे ठीक कर लेंगे ण्हँसी की बात ये है कि महापौर  लीडरशिप की कमजोरी को स्वीकार करते हुए दोषियों पर कार्रवाई की बात कर रहे हैंएउन्हें कौन बताये कि दोषी तो वे स्वयं हैं या उनके निगमायुक्त हैं जो बोरी.बिस्तर बांधकर जा चुके हैं !ण्सीधी सी बात ये है कि निगम के निर्वाचित जन प्रतिनिधियों और निगम प्रशासन के बीच कोई तालमेल न हो पाने के कारण ग्वालियर शहर की फजीहत हुई ण्
ग्वालियर शहर प्रदेश के उन शहरों में शुमार किया जाता था जो आजादी से पहले ही स्मार्ट और स्वच्छ थे एजहां शिक्षाएस्वास्थ्यएपरिवहनएसंचार एकृषिएसिंचाई की सर्वश्रेष्ठ सुविधाएं थीं एलेकिन बीते चालीस साल में स्थानीय निकाय पर काबिज भाजपा ने इस शहर की प्रतिष्ठा को धुल में मिला दिया एशहर का दुर्भाग्य ही है कि कांग्रेस पिछले चार दशक में स्थानीय निकाय से भाजपा को अपदस्थ नहीं कर सकी एहालाँकि   उसके विधायक अनेक बार यहां से जीते और प्रदेश में भी एक दशक तक कांग्रेस की सरकार रही ण्
ग्वालियर दिल्ली से बहुत दूर नहीं है किन्तु अब बीते कुछ वर्षों  से ये देश कि मुख्यधारा से कटा सा लगने लगा हैण्मौजूदा केंद्र सरकार में हमारे ग्वालियर से प्रभावी मंत्री भी हैं किन्तु वे अपने पूर्ववर्ती केंद्रीय मंत्री की तरह ग्वालियर को प्रतिष्ठा नहीं दे पाए एगलती उनकी भी नहीं है क्योंकि वे खुद ग्वालियर से कटे.कटे नजर आते हैं और हाल के दिनों में उनके रहते दुसरे संसदीय क्षेत्र के सांसद को ग्वालियर के हितों के लिए संघर्ष  करना पड़ रहा है ण्
शहर  में आज भी स्थिति बदली नहीं हैण् कमीशन पाने के लिए नगर निगम ने सड़कें साफ़ करने के लिए मशीनें खरीद लीं लेकिन सड़कों की दशा को सुधारा ही नहीं ण्गुना के सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने निगम प्रशासन को इन मशीनों का इस्तेमाल करने से पहले सड़कें सुधरने की हिदायत भी दी थी लेकिन उनकी सुनता कौन है घ्वे ग्वालियर के सांसद तो हैं नहीं एऔर यहां के जो सांसद हैं उन्होंने मौन साध रखा है 
ऐतिहासिक शहर ग्वालियर से चूंकि मेरा भी अब पांच दशक पुराना नाता हो चुका हैएयहां के नमक का कर्ज मेरे ऊपर भी है इसलिए मै ग्वालियर को लेकर हमेशा संवेदनशील और चिंतित रहता हूँण्मैंने हमेशा राजनीति से ऊपर उठकर ग्वालियर के लिए काम करने की वकालत की है एइसी मकसद से मैंने एक बार महापौर का चुनाव भी लड़ा था ताकि सब कुछ निर्विरोध न हो ण्किन्तु ग्वालियर का दुर्भाग्य है कि वो राजनितिक छुद्रताओं के कारण अब तक इंदौर नहीं बन पा रहा है एआगे भी इसकी कोई संभावना नजर नहीं आ रहीण्हाल ही में शिलालेखों की सियासत को लेकर शहर में जो नाटक नौटंकी हुई है उसने संभावनाओं के तमाम रास्ते बंद कर दिए हैं ण्अब शहर की जनता ही कुछ कर सकती हैण्उसके पास एकमेव हथियार वोट है और उसके इस्तेमाल का समय कुछ ही दोनों में दोबारा आने वाला है