जीवन में वास्तविक मूल्य चीज़ों का नहीं, बल्कि हमारे व्यवहार, स्वभाव का है-प्रहलाद भाई

Dec 08 2025

ग्वालियर। माधवगंज स्थित प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के प्रभु उपहार भवन में सकारात्मक सोच से खुशनुमा जीवन विषय पर एक कार्यक्रम का आयोजन हुआ।
कार्यक्रम में केंद्र प्रमुख बीके आदर्श दीदी, भारतीय जनसंचार संस्थान के पूर्व महानिदेशक एवं माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर संजय द्विवेदी, आईटीएम विश्व विद्यालय के प्राध्यापक डॉ मनीष जैसल, प्रेरक वक्ता एवं राजयोग ध्यान प्रशिक्षक बीके प्रहलाद भाई उपस्थित थे।
कार्यक्रम में ब्रह्माकुमारी आदर्श दीदी ने अपने आशीर्वचन देते हुए कहा कि हमारे संस्कारों को दिव्य बनाने वाला सबसे श्रेष्ठ भोजन है, परमात्मा का नित्य सत्संग। जैसे शरीर को भोजन न मिले तो वह कमजोर होने लगता है, वैसे ही आत्मा को सत्संग न मिले तो वह थक जाती है, उलझ जाती है, और धीरे-धीरे जीवन में खालीपन महसूस होने लगता है। दीदी ने आगे कहा कि यदि हम कुछ समय ईश्वर की याद, सत्संग और आत्मचिंतन को नहीं देते, तो मन का शोर शांत नहीं होगा। मन को साधन, पैसा, प्रतिष्ठा नहीं चाहिए, उसे चाहिए परमात्म-शक्ति, प्रेम, स्थिरता और मार्गदर्शन। सच्ची खुशी और शांति तो प्रतिदिन ईश्वर की याद से ही आ सकती है।
आज हम सभी ने भौतिक सुख सुविधाओं के सभी साधन तो इक्क_े कर लिए है, परन्तु शरीर के पास सब कुछ हो जाए, लेकिन मन खाली हो, तो जीवन में आनंद की अनुभूति नहीं हो सकती।  
प्रोफ़ेसर संजय द्विवेदी ने कहा कि यह एक ऐसी जगह है जहां से राजयोग का ज्ञान प्राप्त होता हैं राजयोग हमारी दुनिया को एक सुंदर दुनिया में बदलने का अभ्यास हैं हम सब चाहते हैं कि बेहतर दुनिया बने उसमें सब लोग सुख शांति और आनंद के साथ रहे उस आनंद की खोज में ही इस राजयोग का विकास हुआ है।
डॉ मनीष जैसल ने कहा कि मेरे लिए तो सौभाग्य की बात है कि मुझे समय प्रति समय यहाँ आने का मौका मिलता है। इस कैंपस के अंदर आते ही एक अलग प्रकार की शांति की अनुभूति होती है दुनिया में सबसे अच्छी जगह यही है जहां पर बहुत कुछ प्राप्त कर सकते है और अपना परिवर्तन कर सकते है।
मोटिवेशनल स्पीकर बीके प्रहलाद भाई ने कह कि इंसान इस दुनिया में बहुत कुछ करता है। अपने सपने पूरे करता है, रिश्तों को निभाता है, अनुभव की लेन देन करता है, जीवन को सुंदर बनाने के प्रयास में रहता है। लेकिन हमारे पास जो जमा होता है वह है हमारे श्रेष्ठ कर्म, हमारे संस्कार और हमारी अच्छाई जो हमारे साथ भी जाती है। इसलिए जीवन में वास्तविक मूल्य चीज़ों का नहीं, बल्कि हमारे व्यवहार, हमारे स्वभाव और हमारे आंतरिक भावों का है। जीवन में सबसे बड़ा शत्रु क्रोध है। क्रोध इंसान की बुद्धि को खराब कर देता है, रिश्तों को तोड़ देता है और मन की शांति को छीन लेता है। क्रोध क्षणिक होता है, लेकिन उसका प्रभाव लंबे समय तक रहता है। आज दुनिया में जितनी मानसिक और शारीरिक बीमारियाँ बढ़ रही हैं, उनमें क्रोध, तनाव और आंतरिक बेचैनी सबसे बड़ा कारण बन चुके हैं। गुस्सा न केवल शब्दों को कड़वा बनाता है, बल्कि आत्मा को भी कमजोर कर देता है। इस खालीपन से बाहर निकलने के लिए हमें अपने भीतर रोशनी जगानी होगी धैर्य की, प्रेम की, क्षमा की, और सबसे महत्वपूर्ण, आत्म-जागृति की। जब हम क्रोध को छोडक़र करुणा अपनाते हैं, जब हम शिकायत छोडक़र आभार अपनाते हैं, जब हम बाहरी दिखावे से हटकर अपने भीतर झाँकते हैं तभी जीवन में सच्चा संतोष आता है।