वर्तमान के कर्मों पर ही भविष्य टिका है, इसलिए हमें धर्म का पालन करना चाहिए-सुबल सागरजी

Oct 15 2025

ग्वालियर। धर्म से ही भविष्य उज्ज्वल होता है। वर्तमान के कर्मों पर ही भविष्य टिका है, इसलिए हमें शुभ भावों से धर्म का पालन करना चाहिए। धर्म हमें जीवन जीने की राह दिखाता है, सद्गुण देता है और भविष्य को स्वर्णिम बनाने में मदद करता है, खासकर यदि हम अतीत से सीखकर और धर्म का आचरण करके आगे बढ़ें। सहज और सरल भक्ति से वर्तमान और भविष्य के बुरे कर्मों का नाश हो जाता है, और धर्म कल्पवृक्ष की तरह आत्मिक सुख देता है। यह विचार आचार्यश्री सुबल सागर महाराज ने बुधवार को माधवगंज स्थित दिगंबर जैन मंदिर में धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। 
आचार्यश्री ने कहा कि भविष्य वर्तमान के कर्मों और संस्कारों पर टिका है। वर्तमान के कर्मों से ही भविष्य तय होगा, इसलिए हमें भविष्य को स्वर्णिम बनाने के लिए अतीत से सीख लेनी चाहिए और वर्तमान में अच्छे कर्म करने चाहिए।जिस तरह के कर्म आप आज करेंगे, वैसा ही फल आपको भविष्य में मिलेगा। इसलिए, अपने वर्तमान कर्मों को सुधारना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि फैशन और व्यसनों में धन बर्बाद नहीं करना चाहिए। युवतियों को फैशन पर और युवकों को तंबाकू, गुटखा और शराब जैसे व्यसनों पर खर्च करने से बचना चाहिए। संस्कार ही भविष्य में धर्म और संस्कृति को जीवंत रखेंगे। इसलिए, बचपन से ही बच्चों में अच्छे संस्कार डालना बहुत ज़रूरी है।
आचार्यश्री सुबल सागर महाराज ने कहा कि आत्मिक जीवन का अर्थ है भौतिक सुखों से ऊपर उठकर आत्मा के कल्याण पर ध्यान केंद्रित करना। इसके लिए त्याग, तपस्या और आत्ममंथन आवश्यक है। सच्चा सुख आत्मा को शुद्ध करने से मिलता है, जिसे त्याग और तपस्या के माध्यम से पाया जा सकता है। मन की पवित्रता और निस्वार्थ भाव ही आत्मिक शांति की कुंजी हैं। संसार के विकल्पों में न उलझकर अपनी आत्मा के विकल्पों पर ध्यान देना चाहिए। यही कल्याण का पहला कदम है। दूसरों में दोष देखने के बजाय उनके गुणों को अपनाने का प्रयास करें, क्योंकि निंदा से पुण्य कर्मों में कमी आती है, जबकि प्रशंसा से वृद्धि होती है।