भक्त का भाव ही प्रभु को प्रिय :वशिष्ठ

Jul 04 2025

ग्वालियर। सनातन धर्म मंदिर में श्रीमद् भागवत कथा में कथा व्यास देवेन्द्र वशिष्ठ ने द्वारिकाधीश श्रीकृष्ण के 108 विवाह, द्वारिका लीला, समयंतक मणि की कथा, परम भक्त सुदामा की भावपूर्ण कथा सुनाई।
देवेन्द्र वशिष्ठ ने कहा कि भक्त का भाव ही प्रभु को प्रिय है। गृहस्थ जीवन में परिश्रम करके जो भी अर्जित करते हैं, उससे आप अपने परिवार का पालन पोषण करें, घर आए अतिथि का सत्कार, संत एवं गाय की सेवा अवश्य करें। भगवान केवल भाव से प्रसन्न होते हैं। विधि, नियम से श्रेष्ठ है आपका निष्काम भाव से भगवान के प्रति प्रेम, भगवान के प्रति आपका भाव कैसा है, प्रभु नीति नियम, विधि विधान से नहीं, आपके भाव पर रीझते हैं। उन्होंने कहा, गृहस्थी त्यागने या भगवा धारण करने की कतई आवश्यकता नहीं है। 
विरक्त संन्यासी बनना या तपस्या करना भी जरूरी नहीं है। भक्ति में सरलता और भोलापन चाहिए। कर्माबाई, विदुरानी, नरसिंह मेहता, रैदास, सूरदास, तुकाराम, मीराबाई आदि आदि संतों ने प्रभु को नियम, मर्यादा, तपस्या या मंत्रशुद्धि से नहीं अपितु भाव से पाया।