जेयू के पत्रकारिता विभाग में एक दिवसीय बौद्धिक संपदा अधिकार पर व्याख्यान का हुआ आयोजन

Dec 07 2023

ग्वालियर। पारंपरिक ज्ञान जो हमें हमारे आसपास के समाज, परिवार और संस्कृति से जुडक़र प्राप्त होता है पारंपरिक ज्ञान कहलाता है और जब हम किसी भी विषय पर अपने दिमाग से ऐसी कोई खोज करते है जो आगे चलकर एक ब्रांड का रूप ले लेती है वो आविष्कार हमारी बौद्धिक संपदा होती है जिसका रजिस्ट्रेशन, पेटेंट कराना सुनिश्चित किया गया है ताकि आपकी अनुमति के बगैर कोई उसका दुरुपयोग ना कर पाए यह बात जेयू के पत्रकारिता विभाग में आयोजित व्याख्यान में एनके चौबे ने बतौर अतिथि कही। 
इस अवसर पर पत्रकारिता के यूजी और पीजी के विद्यार्थी ना सिर्फ उनसे रूबरू हुए बल्कि उनसे आईपीआर यानी बौद्धिक संपदा अधिकार के बारे में प्रश्न भी किए और उनको जवाब भी मिले। इस व्याखान का उद्देश्य आईपीआर के बारे में सामान्य जागरूकता एवं समझ को बढ़ाना था। इस दौरान उन्होंने अपने उद्बोधन में यह भी बताया कि किस तरह से मनुष्य की कोई खोज या कोई उत्पाद कैसे बड़े स्तर पर अपनी पहचान बना लेता है और उसकी कीमत वैश्विक बाजार में बढ़ती जाती है। ठीक इसी प्रकार अपने विचारों की कल्पनाओं से तैयार कोई भी लेख, आर्टिकल, कहानी भी इसका हिस्सा बनती है।  उन्होंने आगे बताया कि किस तरह से हम अपनी सामाजिक परम्पराओं, रीति रिवाजों से सीखकर अपनी बुद्धिमता से अपने विचारों को एक नया रूप दे सकते है जो हमें ख्याति प्रदान कराने के साथ ही धन उपार्जित करने में भी सहायक बन सकती है। उन्होंने देश भर में मशहूर मुरैना की गजक, चंदेरी साडिय़ां, कोका–कोला, कडक़नाथ और अमूल दूध के स्लोगन का उदाहरण देते हुए यह भी समझाने का प्रयास किया कि किस तरह से आज यह वैश्विक स्तर पर अपनी छाप छोड़ रहे है और इनके आविष्कारकों से लेकर सरकार, कंपनी और उपभोक्ताओं तक प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से इसका फायदा मिल रहा है। 
इस मौके पर पत्रकारिता विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. एसएन मोहपात्रा, डॉ. हेमकुमारी कुर्मी, डॉ. सतेंद्र नगायच, पुष्पेंद्र सिंह तोमर, राघवेंद्र सिंह सहित छात्र एवं छात्राएं उपस्थित रहे।